Easy and Amazing Poems ( कविता ). Speaking Bird (Bolti Chidiya).
Showing posts with label Hindi. Show all posts
Showing posts with label Hindi. Show all posts
Tuesday, May 26, 2020
Thursday, May 21, 2020
गरीब की जुबानी - (कविता)
जाने कितना खौफ है
थम गए है सारे रस्ते
हमारा क्या दोष है
कहानी जीवन की क्या में बताऊ तुमको
केवल संगर्ष के ही बादल है
कभी कभी समज ही नहीं पाता
इस जीवन की क्या परिभाषा है
सपने देखना कबका छोड़ चूका हु मै
बस इस जीवन की नौका पार लगानी है
दो वक़्त की रोटी मिल जाए
बस एहि हमारी कहानी है
एहि हमारी कहानी है
इस गरीब की जुबानी है
कवी
अक्षय गुप्ता
Tags: Hindi, कविता, गरीब की जुबानी
Tags: Hindi, कविता, गरीब की जुबानी
Thursday, April 23, 2020
अगर सब एक समान हो जाए - ( कविता )

एक दिन यूही बैठे हुए मन में कुछ सवाल आये
कितना अच्छा हो अगर सब एक समान हो जाए
ना गिला ना शिखवा सारे भेद भाव मिट जाए
जैसे विद्यालय में एक समान विद्यार्थी हो जाए
ना उच्च ना नीच ये भावना कही ना रहे
सब एक दूसरे का सम्मान करने लग जाए
कितना अच्छा हो अगर सब एक समान हो जाए
गरीबी का इस जहा से नामोनिशान मिट जाए
और अमीरो का घमंड टूट कर चकनाचूर होजाये
ना कोई किसी का शोषण करे ना ही किसीको को सताये
तब सब समाज के जन कितना क्रितार्थ हो जाए
कितना अच्छा हो अगर सब एक समान हो जाए
ना ही कोई भूखा रहे ना ही कोई चोरी का विचार किसीके के मन में आए
सब जगह हो सुख का मौसम हर जगह से बुराई मिट जाए
दिल में दबि आकांशाओ को पुरे करे सब, सबकी प्रतिभा उभर के आये
सब पड़ लिख कर इस समाज को कितना शिक्षित और विकसित बनाये
कितना अच्छा हो अगर सब एक समान हो जाए
कितना अच्छा हो हम सब उपर वाले का अंश है ये बात सबको समज आ जाए
हर जगह हरियाली ही हरियाली हो फिर पतझर का मौसम कभी ना आए
ना हो किसीकी शान ना हो किसी को अभिमान
ना ही ले कोई किसिका का इम्तिहान
ना ईर्षा ना दुएष सभी तरह के दोष मिट जाए
सबके हिर्दय में एक विनर्म और आत्मीयता की भावना जाग्रित हो जाए
कितना अच्छा हो अगर सब एक समान हो जाए
सबके ऊपर छत हो सबके ऊपर रहे रब की छाया
सब एक दूसरे का सहारा बने ऐसी हो प्रभु की माया
आओ ये एक छोटी सी मन की आशाओ को सब जन तक पहुंचाए
इन विचारो के साथ सबके मन में एक दीप जलाये
फिर कितना अच्छा हो ना अगर सब एक समान हो जाए |
कवी
अक्षय गुप्ता
Tags: अगर सब एक समान हो जाए , कविता , Hindi
ना गिला ना शिखवा सारे भेद भाव मिट जाए
जैसे विद्यालय में एक समान विद्यार्थी हो जाए
ना उच्च ना नीच ये भावना कही ना रहे
सब एक दूसरे का सम्मान करने लग जाए
कितना अच्छा हो अगर सब एक समान हो जाए
गरीबी का इस जहा से नामोनिशान मिट जाए
और अमीरो का घमंड टूट कर चकनाचूर होजाये
ना कोई किसी का शोषण करे ना ही किसीको को सताये
तब सब समाज के जन कितना क्रितार्थ हो जाए
कितना अच्छा हो अगर सब एक समान हो जाए
ना ही कोई भूखा रहे ना ही कोई चोरी का विचार किसीके के मन में आए
सब जगह हो सुख का मौसम हर जगह से बुराई मिट जाए
दिल में दबि आकांशाओ को पुरे करे सब, सबकी प्रतिभा उभर के आये
सब पड़ लिख कर इस समाज को कितना शिक्षित और विकसित बनाये
कितना अच्छा हो अगर सब एक समान हो जाए
कितना अच्छा हो हम सब उपर वाले का अंश है ये बात सबको समज आ जाए
हर जगह हरियाली ही हरियाली हो फिर पतझर का मौसम कभी ना आए
ना हो किसीकी शान ना हो किसी को अभिमान
ना ही ले कोई किसिका का इम्तिहान
ना ईर्षा ना दुएष सभी तरह के दोष मिट जाए
सबके हिर्दय में एक विनर्म और आत्मीयता की भावना जाग्रित हो जाए
कितना अच्छा हो अगर सब एक समान हो जाए
सबके ऊपर छत हो सबके ऊपर रहे रब की छाया
सब एक दूसरे का सहारा बने ऐसी हो प्रभु की माया
आओ ये एक छोटी सी मन की आशाओ को सब जन तक पहुंचाए
इन विचारो के साथ सबके मन में एक दीप जलाये
फिर कितना अच्छा हो ना अगर सब एक समान हो जाए |
कवी
अक्षय गुप्ता
Tags: अगर सब एक समान हो जाए , कविता , Hindi
Tuesday, April 14, 2020
समय गया तो सावन बीता - ( कविता )
टूट के गिरना फिर खिलना सृष्टि ने हमको ये समझाया है
सबको सुरक्षित रख कर घर में एक नया इतिहास रचाना है
टूट चूका है धर्ये जिनका आओ उनका हौसला बढ़ाते जाए
मिलकर इस मुश्किल घडी में हम एक दूसरे का सहारा बन जाए
अंधेरे के बाद एक प्रकाश उजाला कर आता है
यु ही नहीं बिना पिग्ले सोना बन जाता है
समय गया तो सावन बीता मौसम पतझर का आया है
टूट के गिरना फिर खिलना सृष्टि ने हमको ये समझाया है
साथ लड़ेंगे साथ उठेंगे हमको अब जीत जाना है
गिर के संभालना फिर चलना एहि तो हम्हे बचन में सिखाया है
पंखो में उड़ान भरके छु लेंगे आसमानो को
रंग बिरंगे गुलज़ारो में खिलखिलायेंगे भवरे फिरसे
नहीं रोक सकते काटो में खिलने से गुलाब को
सुनाएंगी एक नयी अध्भुत कहानी दिल से
समय गया तो सावन बीता मौसम पतझर का आया है
टूट के गिरना फिर खिलना सृष्टि ने हमको ये समझाया है
कवि
अक्षय गुप्ता
Tags: Hindi , कविता , समय गया तो सावन बीता
Saturday, March 28, 2020
एक कदम मंज़िल की और ( कविता )

बढ़ना है पर मंजिल नहीं
कुछ करना चाहता हु पर आशा नहीं
ज़िंदगी समझना है पर कोई सही रास्ता दिखाने वाले नहीं
हँसना है पर कोई हसाने वाला नहीं
किसी को दिल से चाहना है पर चाहने वाली नहीं
दिन है पर पता नहीं अंधेरा ही नजर आ रहा है
ज़िन्दगी उलझ गयी है पर सुलझाने वाला नहीं
कुछ तो खो गया है कुछ छूट गया है
तो क्या हुआ
मंजिल नहीं है तो निकाल लेंगे
आशा नहीं है तो बना लेंगे
रास्ता नहीं है तो बना लेंगे
किसीको हॅसाकर हंस लेंगे
किसीके दिल में जगह बना ही लेंगे एक दिन
ज़िंदगी की ऊर्जा में अन्धकार को हटा देंगे
दोस्तों ,,..
ये ज़िंदगी हमेशा वही दिखाई देती है जैसा हम सोच लेते है
हम सुलझती हुए लम्हो को हम उलझा देते है
कुछ सीखेंगे समझेंगे ओरो को भी एक आशा की किरण दिखाएंगे
भरदो मन को एक नए रंगो से
फिर देखो ये क्या नए पैगाम लाती है
----------------------------------------------------------------------
By
Akshay Gupta
Tags: Hindi, कविता, एक कदम मंज़िल की और
Tags: Hindi, कविता, एक कदम मंज़िल की और
Friday, March 27, 2020
बदलते पल ( कविता )

कुछ नया कुछ खुला आसमान मिल गया ,
हवा की ताजगी एक नया पैगाम मिल गया !
प्रकृति आज खुली सांस ले रही है ,
शायद उसको भी आज आराम मिल मिल गया !
चिडियो की ध्वनि में एक अलग सी मुस्कहरात है ,
शायद उनको भी एक नया मकान मिल गया !
कुछ तो कमी थी इस जीवन में ,
आज उसका आभास हुआ एहसास हुआ !
चले फिर अपनी गलतियों को सुधारने ,
जिसका आज हमको इतना दुखद परिणाम मिल गया !
जिनको हम पिंजरे में बंद कर देते थे ,
आज वो हुम्हे बंद करके आस्मां में उड़ चले !!!
------------------------------------------------------------
Poet
Akshay Gupta
Tags: Hindi , कविता, बदलते पल
Tags: Hindi , कविता, बदलते पल
Subscribe to:
Posts (Atom)