Saturday, March 28, 2020

एक कदम मंज़िल की और ( कविता )

Speaking Bird (Bolti Chidiya)

बढ़ना है पर मंजिल नहीं 
कुछ करना चाहता हु पर आशा नहीं 
ज़िंदगी समझना है पर कोई सही रास्ता दिखाने वाले नहीं 
हँसना है पर कोई हसाने वाला नहीं 

किसी को दिल से चाहना है पर चाहने वाली नहीं 
दिन है पर पता नहीं अंधेरा ही नजर आ रहा है 
 ज़िन्दगी उलझ गयी है पर सुलझाने  वाला नहीं 
कुछ तो खो गया है कुछ छूट गया है 

तो क्या हुआ 
मंजिल नहीं है तो निकाल लेंगे 
आशा नहीं है तो बना लेंगे 
रास्ता नहीं है तो बना लेंगे 
 किसीको हॅसाकर हंस लेंगे 

किसीके दिल में जगह बना ही लेंगे एक दिन 
ज़िंदगी की ऊर्जा में अन्धकार को हटा देंगे 
दोस्तों ,,.. 
ये ज़िंदगी हमेशा वही दिखाई देती है जैसा हम सोच लेते है 
हम सुलझती हुए लम्हो को हम उलझा देते है 

कुछ सीखेंगे समझेंगे ओरो को भी एक आशा की किरण दिखाएंगे 
भरदो मन को एक नए रंगो से
 फिर देखो ये क्या नए पैगाम लाती है 

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By
Akshay Gupta

Tags: Hindi, कविता, एक कदम मंज़िल की और

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